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गीता द्वितीय अध्ययन, श्लोक ll 33 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 33 ll अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं सङ्‍ग्रामं न करिष्यसि।  ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि॥ हिंदी अनुवाद  किन्तु यदि तू इस धर्मयुक्त युद्ध को नहीं करेगा तो स्वधर्म और कीर्ति को खोकर पाप को प्राप्त होगा ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 32 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 32 ll यदृच्छया चोपपन्नां स्वर्गद्वारमपावृतम्‌।  सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्‌॥ हिंदी अनुवाद  हे पार्थ! अपने-आप प्राप्त हुए और खुले हुए स्वर्ग के द्वार रूप इस प्रकार के युद्ध को भाग्यवान क्षत्रिय लोग ही पाते हैं ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 31 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 31 ll ( क्षत्रिय धर्म के अनुसार युद्ध करने की आवश्यकता का निरूपण )स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि।  धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते॥ हिंदी अनुवाद  तथा अपने धर्म को देखकर भी तू भय करने योग्य नहीं है अर्थात्‌ तुझे भय नहीं करना चाहिए क्योंकि क्षत्रिय के लिए धर्मयुक्त युद्ध से बढ़कर दूसरा कोई कल्याणकारी कर्तव्य नहीं है ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 30 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll  30 ll देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत।  तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि॥ हिंदी अनुवाद  हे अर्जुन! यह आत्मा सबके शरीर में सदा ही अवध्य (जिसका वध नहीं किया जा सके) है। इस कारण सम्पूर्ण प्राणियों के लिए तू शोक करने योग्य नहीं है ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 29 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 29 ll आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन-  माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः।  आश्चर्यवच्चैनमन्यः श्रृणोति  श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्‌॥ हिंदी अनुवाद  कोई एक महापुरुष ही इस आत्मा को आश्चर्य की भाँति देखता है और वैसे ही दूसरा कोई महापुरुष ही इसके तत्व का आश्चर्य की भाँति वर्णन करता है तथा दूसरा कोई अधिकारी पुरुष ही इसे आश्चर्य की भाँति सुनता है और कोई-कोई तो सुनकर भी इसको नहीं जानता ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 28 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 28 ll अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत।  अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना॥ हिंदी अनुवाद  हे अर्जुन! सम्पूर्ण प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मरने के बाद भी अप्रकट हो जाने वाले हैं, केवल बीच में ही प्रकट हैं, फिर ऐसी स्थिति में क्या शोक करना है? ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 27 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 27 ll जातस्त हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।  तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि॥ हिंदी अनुवाद  क्योंकि इस मान्यता के अनुसार जन्मे हुए की मृत्यु निश्चित है और मरे हुए का जन्म निश्चित है। इससे भी इस बिना उपाय वाले विषय में तू शोक करने योग्य नहीं है ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 26 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 26 ll अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्‌।  तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि॥ हिंदी अनुवाद  किन्तु यदि तू इस आत्मा को सदा जन्मने वाला तथा सदा मरने वाला मानता हो, तो भी हे महाबाहो! तू इस प्रकार शोक करने योग्य नहीं है ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 25 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 25 ll अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते।  तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि॥॥ हिंदी अनुवाद  यह आत्मा अव्यक्त है, यह आत्मा अचिन्त्य है और यह आत्मा को विकाररहित कहा जाता है। इससे हे अर्जुन! इस आत्मा को उपर्युक्त प्रकार से जानकर तू शोक करने के योग्य नहीं है अर्थात्‌ तेरा शोक करना उचित नहीं होगा ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 24 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 24 ll अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च।  नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः॥ हिंदी अनुवाद  क्योंकि यह आत्मा अच्छेद्य है, यह आत्मा अदाह्य, अक्लेद्य और निःसंदेह अशोष्य है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला और सनातन है ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 23ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 23 ll नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।  न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥ हिंदी   अनुवाद  आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकता ॥

गीता द्वित्य अध्याय, श्लोक ll 22 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 22 ll वासांसि जीर्णानि यथा विहाय  नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।  तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-  न्यन्यानि संयाति नवानि देही॥ हिंदी अनुवाद  जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 21 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 21 ll वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम्‌।  कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम्‌॥ हिंदी अनुवाद  हे पृथापुत्र अर्जुन! जो पुरुष इस आत्मा को नाशरहित, नित्य, अजन्मा और अव्यय जानता है, वह पुरुष कैसे किसको मरवाता है और कैसे किसको मारता है? ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 20 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 20 ll न जायते म्रियते वा कदाचि-  न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।  अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो-  न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥   हिंदी अनुवाद  यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है, तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है, शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जा सकता ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 19 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 19 ll य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्‌।  उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते॥ हिंदी  अनुवाद  जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसको मरा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते क्योंकि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारता है और न किसी द्वारा मारा जाता है ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 18 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 18 ll अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः।  अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत॥ हिंदी अनुवाद   इस नाशरहित, अप्रमेय, नित्यस्वरूप जीवात्मा के ये सब शरीर नाशवान कहे गए हैं, इसलिए हे भरतवंशी अर्जुन! तू युद्ध कर ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 17 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 17 ll अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्‌।  विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति॥ हिंदी अनुवाद  नाशरहित तो तू उसको जान, जिससे यह सम्पूर्ण जगत्‌- दृश्यवर्ग व्याप्त है। इस अविनाशी का विनाश करने में कोई भी समर्थ नहीं है ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 16 ll

गीता द्वितीय  अध्याय  श्लोक ll 16 ll नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः।  उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्वदर्शिभिः॥ हिंदी अनुवाद  असत्‌ वस्तु की तो सत्ता नहीं है और सत्‌ का अभाव नहीं है। इस प्रकार इन दोनों का ही तत्व तत्वज्ञानी पुरुषों द्वारा देखा गया है ॥

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ll 15 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 15 ll मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।  आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत॥ हिंदी अनुवाद  हे कुंतीपुत्र! सुख दुख को सामान समझने वाले जिस धीर पुरुष को इन्द्रिय भी बयाकुल नहीँ करते  उनको तू सहन कर, उनको तू सहन कर, ये दोनों मोक्षः के योग है ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 14 ll

गीता द्वितीय  अध्याय  श्लोक ll 14 ll मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।  आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत॥ हिंदी अनुवाद  हे कुंतीपुत्र! सर्दी-गर्मी और सुख-दुःख को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग तो उत्पत्ति-विनाशशील और अनित्य हैं, इसलिए हे भारत! उनको तू सहन कर ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 13 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 13 ll देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।  तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति॥ हिंदी अनुवाद  जैसे जीवात्मा की इस देह में बालकपन, जवानी और वृद्धावस्था होती है, वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति भी होती है, इसकारण, उस विषय में धीर पुरुष मोहित नहीं होता ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 12 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 12 ll न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।  न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्‌॥ हिंदी अनुवाद  न तो ऐसा ही है कि मैं किसी काल में नहीं था, तू नहीं था अथवा ये राजा लोग नहीं थे और न ऐसा ही है कि इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 11 ll

गीता द्वितीत अधयाय  श्लोक ll 11 ll ( सांख्ययोग का विषय )  श्री भगवानुवाच  अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।  गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः॥ हिंदी अनुवाद  श्री भगवान बोले, हे अर्जुन! तू न शोक करने योग्य मनुष्यों के लिए शोक कर रहा है और पण्डितों के सामान ऐसे वचनों को कह रहा है, परन्तु जिनके प्राण चले गए हैं, उनके लिए और जिनके प्राण नहीं गए हैं उनके लिए भी पण्डितजन शोक नहीं करते ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 10 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 10 ll तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत।  सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदंतमिदं वचः॥ हिंदी अनुवाद  हे भरतवंशी धृतराष्ट्र! अंतर्यामी श्रीकृष्ण महाराज दोनों सेनाओं के बीच में शोक करते हुए उस अर्जुन को हँसते हुए से यह वचन बोले ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 9ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 9 ll संजय उवाच  एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तप।  न योत्स्य इतिगोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह॥ हिंदी अनुवाद  संजय बोले- हे राजन्‌! निद्रा को जीतने वाले अर्जुन अंतर्यामी श्रीकृष्ण महाराज के प्रति इस प्रकार कहकर फिर श्री गोविंद भगवान्‌ से 'युद्ध नहीं करूँगा' यह स्पष्ट कहकर चुप हो गये ॥

गीता द्वितीय अध्याय,श्लोक ll 8 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 8 ll न हि प्रपश्यामि ममापनुद्या-  द्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम्‌।  अवाप्य भूमावसपत्रमृद्धं-  राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम्‌॥ हिंदी अनुवाद  क्योंकि भूमि में निष्कण्टक, धन-धान्य सम्पन्न राज्य को और देवताओं के स्वामीपने को प्राप्त होकर भी मैं उस उपाय को नहीं देखता हूँ, जो मेरी इन्द्रियों के सुखाने वाले शोक को दूर कर सके ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 7 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 7 ll कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः  पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः।  यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे  शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्‌॥ हिंदी अनुवाद  इसलिए कायरता रूप दोष से उपहत हुए स्वभाव वाला तथा धर्म के विषय में मोहित चित्त हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि जो साधन निश्चित कल्याणकारक हो, वह मेरे लिए कहिए क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ, इसलिए आपके शरण हुए मुझको शिक्षा दीजिए ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 6 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 6 ll न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो-  यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः।  यानेव हत्वा न जिजीविषाम-  स्तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः॥   हिंदी अनुवाद  हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिए युद्ध करना और न करना- इन दोनों में से कौन-सा श्रेष्ठ है, अथवा यह भी नहीं जानते कि उन्हें हम जीतेंगे या हमको वे जीतेंगे। और जिनको मारकर हम जीना भी नहीं चाहते, वे ही हमारे आत्मीय धृतराष्ट्र के पुत्र हमारे मुकाबले में खड़े हैं ॥

गीता द्वितीय अध्याय, अलोक ll5 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 5 ll  गुरूनहत्वा हि महानुभावा-  ञ्छ्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके।  हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव  भुंजीय भोगान्‌ रुधिरप्रदिग्धान्‌॥ हिंदी अनुवाद   इसलिए,  मैं  इन महान गुरुजनों को न मारकर मैं इस लोक में भिक्षा का अन्न भी खाना कल्याणकारक समझता हूँ क्योंकि,  गुरुजनों को मारकर भी इस लोक में रक्त से सने हुए अन्न और कामरूप भोगों को ही तो भोगूँगा ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 4 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 4 ll अर्जुन उवाच  कथं भीष्ममहं सङ्‍ख्ये द्रोणं च मधुसूदन।  इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन॥ हिंदी अनुवाद  अर्जुन बोले- हे मधुसूदन! मैं रणभूमि में किस प्रकार बाणों से भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के विरुद्ध लड़ूँगा? क्योंकि हे अरिसूदन! वे दोनों ही पूजनीय हैं ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 3 ll

गीता द्वितीय अध्याय श्लोक ll 3 ll क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।  क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥  हिंदी अनुवाद  इसलिए हे अर्जुन! नपुंसकता को मत प्राप्त हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती। हे परंतप! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के लिए खड़ा हो जा ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 2 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 2 ll श्रीभगवानुवाच  कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्‌।  अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन। हिंदी अनुवाद  श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्ति को करने वाला ही है ॥

गीता द्वितीय अध्याय, श्लोक ll 1 ll

गीता द्वितीय अध्याय  श्लोक ll 1 ll श्रीभगवानुवाच  कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्‌।  अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन। हिंदी अनुवाद  श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्ति को करने वाला ही है ॥

जब्त प्रथम अध्याय, श्लोक ll 47 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 47 ll संजय उवाच  एवमुक्त्वार्जुनः सङ्‍ख्ये रथोपस्थ उपाविशत्‌।  विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः॥ हिंदी अनुवाद  संजय बोले- रणभूमि में शोक से उद्विग्न मन वाले अर्जुन इस प्रकार कहकर, बाणसहित धनुष को त्यागकर रथ के पिछले भाग में बैठ गए ॥ ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादेऽर्जुनविषादयोगो नाम प्रथमोऽध्यायः  ll 1 ll

गीता प्रथम अध्याय ll 46 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 46 ll यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः।  धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत्‌॥ हिंदी अनुवाद  यदि मुझ शस्त्ररहित एवं सामना न करने वाले को शस्त्र हाथ में लिए हुए धृतराष्ट्र के पुत्र रण में मार डालें तो वह मारना भी मेरे लिए अधिक कल्याणकारक होगा ॥

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ll 45 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 45 ll अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्‌।  यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः हिंदी अनुवाद  हा! शोक! हम लोग बुद्धिमान होकर भी महान पाप करने को तैयार हो गए हैं, जो राज्य और सुख के लोभ से स्वजनों को मारने के लिए उद्यत हो गए हैं ॥

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ll 44 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 44 ll उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन।  नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम॥ हिंदी अनुवाद  हे जनार्दन! जिनका कुल-धर्म नष्ट हो गया है, ऐसे मनुष्यों का अनिश्चितकाल तक नरक में वास होता है, ऐसा हम सुनते आए हैं ॥

गीता प्रथम अध्याय ll 43 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 43 ll दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसंकरकारकैः।  उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः॥ हिंदी अनुवाद  इन वर्णसंकरकारक दोषों से कुलघातियों के सनातन कुल-धर्म और जाति-धर्म नष्ट हो जाते हैं ॥

गीता प्रार्थना अध्याय, श्लोक ll 42 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 42 ll संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च।  पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः॥ हिंदी अनुवाद  वर्णसंकर कुलघातियों को और कुल को नरक में ले जाने के लिए ही होता है। लुप्त हुई पिण्ड और जल की क्रिया वाले अर्थात श्राद्ध और तर्पण से वंचित इनके पितर लोग भी अधोगति को प्राप्त होते हैं ॥

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ll 41 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 41 ll तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ।  पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्‌॥ हिंदी अनुवाद  इसलिए हे अर्जुन! तू पहले इन्द्रियों को वश में करके इस ज्ञान और विज्ञान का नाश करने वाले महान पापी काम को अवश्य ही बलपूर्वक मार डाल ॥

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ll 40 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 40 ll  इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते।  एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम्‌॥ हिंदी अनुवाद  इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि- ये सब इसके वासस्थान कहे जाते हैं। यह काम इन मन, बुद्धि और इन्द्रियों द्वारा ही ज्ञान को आच्छादित करके जीवात्मा को मोहित करता है ॥  

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ll 39 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 39 ll आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा।  कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च॥ हिंदी अनुवाद  और हे अर्जुन! इस अग्नि के समान कभी न पूर्ण होने वाले काम रूप ज्ञानियों के नित्य वैरी द्वारा मनुष्य का ज्ञान ढँका हुआ है ॥

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ll 38 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 38 ll धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च।  यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम्‌॥ हिंदी अनुवाद  जिस प्रकार धुएँ से अग्नि और मैल से दर्पण ढँका जाता है तथा जिस प्रकार जेर से गर्भ ढँका रहता है, वैसे ही उस काम द्वारा यह ज्ञान ढँका रहता है ll  

गीता प्रथम अध्याय श्लोक ll 37 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 37 ll यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन।  ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा॥ हिंदी अनुवाद  क्योंकि हे अर्जुन! जैसे प्रज्वलित अग्नि ईंधनों को भस्ममय कर देता है, वैसे ही ज्ञानरूप अग्नि सम्पूर्ण कर्मों को भस्ममय कर देता है ॥  

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ll 36 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 36 ll  अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमःl  सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि ll हिंदी अनुवाद  यदि तू अन्य सब पापियों से भी अधिक पाप करने वाला है, तो भी तू ज्ञान रूप नौका द्वारा निःसंदेह सम्पूर्ण पाप-समुद्र से भलीभाँति तर जाएगा ll

गीता प्रथम अध्याय श्लोक ll 35 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 35 ll यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव।  येन भुतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि॥ हिंदी अनुवाद  जिसको जानकर फिर तू इस प्रकार मोह को नहीं प्राप्त होगा तथा हे अर्जुन! जिस ज्ञान द्वारा तू सम्पूर्ण भूतों को निःशेषभाव से पहले अपने में (गीता अध्याय 6 श्लोक 29 में देखना चाहिए।) और पीछे मुझ सच्चिदानन्दघन परमात्मा में देखेगा। (गीता अध्याय 6 श्लोक 30 में देखना चाहिए।) ll

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ll 34 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 34 ll तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।  उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्वदर्शिनः॥ हिंदी अनुवाद  उस ज्ञान को तू तत्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ, उनको भलीभाँति दण्डवत्‌ प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म तत्व को भलीभाँति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्वज्ञान का उपदेश करेंगे ll  

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ll 33 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक  ll 33 ll ( ज्ञान की महिमा ) श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तप।  सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते॥ हिंदी अनुवाद  ~~~~~~~~~~~~ हे परंतप अर्जुन! द्रव्यमय यज्ञ की अपेक्षा ज्ञान यज्ञ अत्यन्त श्रेष्ठ है तथा यावन्मात्र सम्पूर्ण कर्म ज्ञान में समाप्त हो जाते हैं  ॥33॥ 

गीता प्रथम अध्याय श्लोक ll 32ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 32 ll एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे।  कर्मजान्विद्धि तान्सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे॥ हिंदी अनुवाद   ~~~~~~~~~~~ इसी प्रकार और भी बहुत तरह के यज्ञ वेद की वाणी में विस्तार से कहे गए हैं। उन सबको तू मन, इन्द्रिय और शरीर की क्रिया द्वारा सम्पन्न होने वाले जान, इस प्रकार तत्व से जानकर उनके अनुष्ठान द्वारा तू कर्म बंधन से सर्वथा मुक्त हो जाएगा ll

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ll 31 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 31 ll यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम्‌।  नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य कुतोऽन्यः कुरुसत्तम॥   हिंदी अनुवाद  हे कुरुश्रेष्ठ अर्जुन! यज्ञ से बचे हुए अमृत का अनुभव करने वाले योगीजन सनातन परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं। और यज्ञ न करने वाले पुरुष के लिए तो यह मनुष्यलोक भी सुखदायक नहीं है, फिर परलोक कैसे सुखदायक हो सकता है?

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ll 31 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 31 ll निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव।  न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे॥ हिंदी   अनुवाद  ~~~~~~~~~~~  केशव! मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूँ तथा युद्ध में स्वजन-समुदाय को मारकर कल्याण भी नहीं देखता ll  

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ll 30 ll

गीता प्रथम अध्याय    श्लोक ll 30 ll (मोह से व्याप्त हुए अर्जुन के कायरता, स्नेह और शोकयुक्त वचन )   अर्जुन उवाच  दृष्टेवमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्‌॥  सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति।   वेपथुश्च शरीरे में रोमहर्षश्च जायते॥ हिंदी अनुवाद  ~~~~~~~~~~~~ अर्जुन बोले- हे कृष्ण! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजनसमुदाय को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं और मुख सूखा जा रहा है तथा मेरे शरीर में कम्प एवं रोमांच हो रहा है ll  

गीता प्रथम अध्याय श्लोक ll 28-29 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक  ll28-29 ll (मोह से व्याप्त हुए अर्जुन के कायरता, स्नेह और शोकयुक्त वचन )   अर्जुन उवाच  दृष्टेवमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्‌॥  सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति।   वेपथुश्च शरीरे में रोमहर्षश्च जायते॥ हिंदी अनुवाद  ~~~~~~~~~~~~~~ अर्जुन बोले- हे कृष्ण! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजनसमुदाय को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं और मुख सूखा जा रहा है तथा मेरे शरीर में कम्प एवं रोमांच हो रहा है ll

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ll 27 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 27 ll तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्‌ बन्धूनवस्थितान्‌॥  कृपया परयाविष्टो विषीदत्रिदमब्रवीत्‌। हिन्दी अनुवाद  ~~~~~~~~~~ उन उपस्थित सम्पूर्ण बंधुओं को देखकर वे कुंतीपुत्र अर्जुन अत्यन्त करुणा से युक्त होकर शोक करते हुए यह वचन बोले ll

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ll 26 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 26 ll संजय उवाचः  तत्रापश्यत्स्थितान्‌ पार्थः पितृनथ पितामहान्‌।  आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा॥  श्वशुरान्‌ सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि। हिंदी अनुवाद  ~~~~~~~~~ इसके बाद पृथापुत्र अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओं में स्थित ताऊ-चाचों को, दादों-परदादों को, गुरुओं को, मामाओं को, भाइयों को, पुत्रों को, पौत्रों को तथा मित्रों को, ससुरों को और सुहृदों को भी देखा ll   

गीता प्रथम अनुवाद, श्लोक ll 24 -25 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 24-25 ll संजय उवाचः  एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत।  सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्‌॥  भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम्‌।  उवाच पार्थ पश्यैतान्‌ समवेतान्‌ कुरूनिति॥ हिंदी अनुवाद  ~~~~~~~~~ संजय बोले- हे धृतराष्ट्र! अर्जुन द्वारा कहे अनुसार महाराज श्रीकृष्णचंद्र ने दोनों सेनाओं के बीच में भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथ को खड़ा कर इस प्रकार कहा कि हे पार्थ! युद्ध के लिए जुटे हुए इन कौरवों को देख ll 

गीता प्रथम अध्याय श्लोक ll 23 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 23 ll योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः।  धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः॥ हिंदी अनुवाद  ~~~~~~~~~ दुर्बुद्धि दुर्योधन का युद्ध में,   हित चाहने वाले जो-जो ये,   राजा लोग इस सेना में आए हैं, इन युद्ध करने वालों को मैं देखूँगा ll

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ll 22 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 22 ll यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्‌।  कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे॥ हिंदी अनुवाद  ~~~~~~~~~~~~ और जब तक कि मैं युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इन विपक्षी योद्धाओं को भली प्रकार देख न लूँ कि इस युद्ध रूप व्यापार में मुझे किन-किन के साथ युद्ध करना योग्य है, तब तक उसे खड़ा रखिए ll

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ll 20, 21 ll

गीता प्रथम अध्याय श्लोक - ll 20, 21  ll अर्जुन द्वारा सेना-निरीक्षण का प्रसंग)  अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्‌ कपिध्वजः।  प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः॥   हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते।     अर्जुन उवाचः   सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत॥ हिंदी अनुवाद  ~~~~~~~~~~~ हे राजन्‌! इसके बाद कपिध्वज अर्जुन ने मोर्चा बाँधकर डटे हुए धृतराष्ट्र-संबंधियों को देखकर, उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष उठाकर हृषीकेश श्रीकृष्ण महाराज से यह वचन कहा- हे अच्युत! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिए ॥

गीता प्रथम अध्याय श्लोक ll 19 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ll 19 ll स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्‌।  नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्‌॥ और उस भयानक शब्द ने आकाश और पृथ्वी को भी गुंजाते हुए धार्तराष्ट्रों के अर्थात आपके पक्षवालों के हृदय विदीर्ण कर दिए ll

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक || 17-18 ||

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक || 17-18 || काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः।  धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः॥  द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।  सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः पृथक्पृथक्‌॥ श्रेष्ठ धनुष वाले काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि, राजा द्रुपद एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र और बड़ी भुजावाले सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु- इन सभी ने, हे राजन्‌! सब ओर से अलग-अलग शंख बजाए ||

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ll 16 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक  ll 16 ll अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।  नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ॥ कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाए ॥

गीता प्रथम अधयाय श्लोक ll 15 ll

गीता प्रथम  अध्याय  श्लोक   || 15 || पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः।  पौण्ड्रं दध्मौ महाशंख भीमकर्मा वृकोदरः॥ श्रीकृष्ण महाराज ने पाञ्चजन्य नामक, अर्जुन ने देवदत्त नामक और भयानक कर्मवाले भीमसेन ने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया ||  

गीता प्रथम अध्याय श्लोक ll 14 ll

  गीता प्रथम अध्याय  श्लोक  ll 14 ll ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ।  माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शंखौ प्रदध्मतुः॥ इसके अनन्तर सफेद घोड़ों से युक्त उत्तम रथ में बैठे हुए श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुन ने भी अलौकिक शंख बजाए  ll

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ||13 ||

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक  ll13 ll ततः शंखाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः।  सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत्‌॥ इसके पश्चात शंख और नगाड़े तथा ढोल, मृदंग और नरसिंघे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे। उनका वह शब्द बड़ा भयंकर हुआ ll  

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ll 12 ll

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक  || 12  || (दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का कथन)    तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः।  सिंहनादं विनद्योच्चैः शंख दध्मो प्रतापवान्‌॥ कौरवों में वृद्ध बड़े प्रतापी पितामह भीष्म ने उस दुर्योधन के हृदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वर से सिंह की दहाड़ के समान गरजकर शंख बजाया  

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक || 11 ||

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक   || 11 || अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः।  भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि॥ इसलिए सब मोर्चों पर अपनी-अपनी जगह स्थित रहते हुए आप लोग सभी निःसंदेह भीष्म पितामह की ही सब ओर से रक्षा करें  ॥11॥

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक || 10 ||

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक  || 10 || अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्‌।  पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्‌॥ भीष्म पितामह द्वारा रक्षित हमारी वह सेना सब प्रकार से अजेय है और भीम द्वारा रक्षित इन लोगों की यह सेना जीतने में सुगम है ||    

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक || 9 ||

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक || 9 || अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः।  नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः॥ और भी मेरे लिए जीवन की आशा त्याग देने वाले बहुत-से शूरवीर अनेक प्रकार के शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित और सब-के-सब युद्ध में चतुर हैं  ॥9॥

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक ||8||

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक  || 8 || भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः।  अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च॥ हिंदी अनुवाद  आप-द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्रामविजयी कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा ||

गीता प्रथम अधयाय, श्लोक || 7 ||

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक || 7 || अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।  नायका मम सैन्यस्य सञ्ज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते॥ हिंदी अनुवाद  हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! अपने पक्ष में भी जो प्रधान हैं, उनको आप समझ लीजिए। आपकी जानकारी के लिए मेरी सेना के जो-जो सेनापति हैं, उनको बतलाता हूँ ||  

गीता प्रथम अध्याय श्लोक || 4-6 ||

गीता प्रथम अध्याय श्लोक ||4-6||   अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।  युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः॥   धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्‌।  पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङवः॥   युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्‌।  सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः॥ हिंदी अनुवाद  इस सेना में बड़े-बड़े धनुषों वाले तथा युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद, धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज और मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य, पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र- ये सभी महारथी हैं ||  

गीता प्रथम अध्याय, श्लोक || 3 ||

गीता प्रथम अध्याय  श्लोक   || 3 || पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्‌।  व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता॥ हे आचार्य! आपके बुद्धिमान्‌ शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डुपुत्रों की इस बड़ी भारी सेना को देखिए  ॥3॥

प्रथम अध्याय, श्लोक ll 1 ll

भगवद गीता प्रथम अध्याय  श्लोक ||2|| संजय उवाच दृष्टवा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा।  आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्‌॥ संजय बोले- उस समय राजा दुर्योधन ने व्यूहरचनायुक्त पाण्डवों की सेना को देखा और द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन कहा  

प्रथम अधयाय, श्लोक ll2ll

गीता का प्रथम अध्याय  ~श्लोक ~||1|| धृतराष्ट्र उवाच धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।  मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय॥ धृतराष्ट्र बोले- हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध की इच्छावाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?  ॥1॥