गीता प्रथम अध्याय
श्लोक ll 5 ll
गुरूनहत्वा हि महानुभावा-
ञ्छ्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके।
हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव
भुंजीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान्॥
हिंदी अनुवाद
इसलिए, मैं इन महान गुरुजनों को न मारकर मैं इस लोक में भिक्षा का अन्न भी खाना कल्याणकारक समझता हूँ क्योंकि,
गुरुजनों को मारकर भी इस लोक में रक्त से सने हुए अन्न और कामरूप भोगों को ही तो भोगूँगा ॥
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