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गीता दशम अध्याय श्लोक 38

गीता दशम अध्याय  श्लोक ||38|| दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम्‌। मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्‌॥  हदी अनुवाद मैं दमन करने वालों का दंड अर्थात्‌ दमन करने की शक्ति हूँ, जीतने की इच्छावालों की नीति हूँ, गुप्त रखने योग्य भावों का रक्षक मौन हूँ और ज्ञानवानों का तत्त्वज्ञान मैं ही हूँ ॥

गीता दशम अध्याय श्लोक 37

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 37 ll वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनञ्जयः। मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः॥ हिंदी अनुवाद  वृष्णिवंशियों में (यादवों के अंतर्गत एक वृष्णि वंश भी था) वासुदेव अर्थात्‌ मैं स्वयं तेरा सखा, पाण्डवों में धनञ्जय अर्थात्‌ तू, मुनियों में वेदव्यास और कवियों में शुक्राचार्य कवि भी मैं ही हु ॥

गीता दशम अध्याय श्लोक 36

गीता दशम अध्याय  श्लोक 36 द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्‌। जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वं सत्त्ववतामहम्‌॥  हदी अनुवाद मैं छल करने वालों में जूआ और प्रभावशाली पुरुषों का प्रभाव हूँ। मैं जीतने वालों का विजय हूँ, निश्चय करने वालों का निश्चय और सात्त्विक पुरुषों का सात्त्विक भाव हूँ ॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll 35 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 35 ll बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्‌। मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः॥ हिंदी अनुवाद  तथा गायन करने योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम और छंदों में गायत्री छंद हूँ तथा महीनों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में वसंत मैं हूँ ॥

गीता दशम अध्याय श्लोक 34

गीता दशम अध्याय  श्लोक  ||34|| मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्‌। कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा॥  हिंदी अनुवाद मैं सबका नाश करने वाला मृत्यु और उत्पन्न होने वालों का उत्पत्ति हेतु हूँ तथा स्त्रियों में कीर्ति (कीर्ति आदि ये सात देवताओं की स्त्रियाँ और स्त्रीवाचक नाम वाले गुण भी प्रसिद्ध हैं, इसलिए दोनों प्रकार से ही भगवान की विभूतियाँ हैं), श्री, वाक्‌, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा हूँ ॥
  गीता दशम अध्याय  श्लोक || 33 || अक्षराणामकारोऽस्मि द्वंद्वः सामासिकस्य च। अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतोमुखः॥ हिंदी अनुवाद  मैं अक्षरों में अकार हूँ और समासों में द्वंद्व नामक समास हूँ। अक्षयकाल अर्थात्‌ काल का भी महाकाल तथा सब ओर मुखवाला, विराट्स्वरूप, सबका धारण-पोषण करने वाला भी मैं ही हू ॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll32 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 32 ll सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन। अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम्‌॥ हिंदी अनुवाद  हे अर्जुन! सृष्टियों का आदि और अंत तथा मध्य भी मैं ही हूँ। मैं विद्याओं में अध्यात्मविद्या अर्थात्‌ ब्रह्मविद्या और परस्पर विवाद करने वालों का तत्व-निर्णय के लिए किया जाने वाला वाद हूँ ॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll 31 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 31 ll पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्‌। झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी॥ हिंदी अनुवाद  मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्रधारियों में श्रीराम हूँ तथा मछलियों में मगर हूँ और नदियों में श्री भागीरथी गंगाजी हूँ ॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll 30 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 30 ll प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम्‌। मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम्‌॥ हिंदी अनुवाद  मैं दैत्यों में प्रह्लाद और गणना करने वालों का समय (क्षण, घड़ी, दिन, पक्ष, मास आदि में जो समय है वह मैं हूँ) हूँ तथा पशुओं में मृगराज सिंह और पक्षियों में गरुड़ हूँ ॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll 29 ll

गीता दशम अध्याय,  श्लोक ll 29ll अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्‌। पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्‌॥ हिंदी अनुवाद  मैं नागों में (नाग और सर्प ये दो प्रकार की सर्पों की ही जाति है।) शेषनाग और जलचरों का अधिपति वरुण देवता हूँ और पितरों में अर्यमा नामक पितर तथा शासन करने वालों में यमराज मैं हूँ ॥

गीता दशम अध्याय श्लोक 28

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 28ll आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक्‌। प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः॥ हिंदी अनुवाद  मैं शस्त्रों में वज्र और गौओं में कामधेनु हूँ। शास्त्रोक्त रीति से सन्तान की उत्पत्ति का हेतु कामदेव हूँ और सर्पों में सर्पराज वासुकि हूँ ll

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll 27 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 27 ll उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्धवम्‌। एरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम्‌॥ हिंदी अनुवाद  घोड़ों में अमृत के साथ उत्पन्न होने वाला उच्चैःश्रवा नामक घोड़ा, श्रेष्ठ हाथियों में ऐरावत नामक हाथी और मनुष्यों में राजा मुझको जान ॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll 26 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 26 ll अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः। गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः॥ हिंदी अनुवाद  मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष, देवर्षियों में नारद मुनि, गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्धों में कपिल मुनि हूँ ॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll25 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 25 ll महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्‌। यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः॥ हिंदी अनुवाद  मैं महर्षियों में भृगु और शब्दों में एक अक्षर अर्थात्‌‌ ओंकार हूँ। सब प्रकार के यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहने वालों में हिमालय पहाड़ हूँ ll

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll 24 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 24 ll पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्‌। सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः॥ हिंदी अनुवाद  पुरोहितों में मुखिया बृहस्पति मुझको जान। हे पार्थ! मैं सेनापतियों में स्कंद और जलाशयों में समुद्र हूँ ॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll 23ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll23ll रुद्राणां शङ्‍करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्‌। वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्‌॥ हिंदी अनुवाद  मैं एकादश रुद्रों में शंकर हूँ और यक्ष तथा राक्षसों में धन का स्वामी कुबेर हूँ। मैं आठ वसुओं में अग्नि हूँ और शिखरवाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत हूँ ॥23॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll22ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 22 ll वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः। इंद्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना॥ हिंदी अनुवाद  मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवों में इंद्र हूँ, इंद्रियों में मन हूँ और भूत प्राणियों की चेतना अर्थात्‌ जीवन-शक्ति हूँ ॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll 21ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 21 ll आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्‌। मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी॥ मैं अदिति के बारह पुत्रों में विष्णु और ज्योतियों में किरणों वाला सूर्य हूँ तथा मैं उनचास वायुदेवताओं का तेज और नक्षत्रों का अधिपति चंद्रमा हूँ ॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll21ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 21 ll आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्‌। मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी॥ हिंदी अनुवाद  मैं अदिति के बारह पुत्रों में विष्णु और ज्योतियों में किरणों वाला सूर्य हूँ तथा मैं उनचास वायुदेवताओं का तेज और नक्षत्रों का अधिपति चंद्रमा हूँ ॥

गीता दशम अध्याय श्लोकll 20 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोकll 20 ll अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः। अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च॥  हदी अनुवाद हे अर्जुन! मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा संपूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अंत भी मैं ही हूँ 

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll 19 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll19 ll भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)  श्रीभगवानुवाच हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः। प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे॥ हिंदी अनुवाद  श्री भगवान बोले- हे कुरुश्रेष्ठ! अब मैं जो मेरी दिव्य विभूतियाँ हैं, उनको तेरे लिए प्रधानता से कहूँगा; क्योंकि मेरे विस्तार का अंत नहीं है ॥

असम अध्याय श्लोक 18

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 18 ll विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन। भूयः कथय तृप्तिर्हि श्रृण्वतो नास्ति मेऽमृतम्‌॥ हिंदी अनुवाद  हे जनार्दन! अपनी योगशक्ति को और विभूति को फिर भी विस्तारपूर्वक कहिए, क्योंकि आपके अमृतमय वचनों को सुनते हुए मेरी तृप्ति नहीं होती अर्थात्‌ सुनने की उत्कंठा बनी ही रहती है ॥

श्रीमद भगवत गीता हिंदी श्लोक ll 15 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 15 ll स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम। भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते॥ हिंदी अनुवाद  हे भूतों को उत्पन्न करने वाले! हे भूतों के ईश्वर! हे देवों के देव! हे जगत्‌ के स्वामी! हे पुरुषोत्तम! आप स्वयं ही अपने से अपने को जानते हैं ॥

श्रीमद्भागवत गीता दशम अध्याय श्लोक 16

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll16 ll वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतयः। याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि॥  हदी अनुवाद इसलिए आप ही उन अपनी दिव्य विभूतियों को संपूर्णता से कहने में समर्थ हैं, जिन विभूतियों द्वारा आप इन सब लोकों को व्याप्त करके स्थित हैं ॥

गीता दशम अध्याय श्लोक 17

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 17 ll कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन्‌। केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया॥  हदी अनुवाद  योगेश्वर! मैं किस प्रकार निरंतर चिंतन करता हुआ आपको जानूँ और हे भगवन्‌! आप किन-किन भावों में मेरे द्वारा चिंतन करने योग्य हैं? ॥

गीता दशम अध्याय श्लोक 14

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 14  ll  सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव। न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवाः॥  हिंदी अनुवाद हे केशव! जो कुछ भी मेरे प्रति आप कहते हैं, इस सबको मैं सत्य मानता हूँ। हे भगवन्‌! आपके लीलामय (गीता अध्याय 4 श्लोक 6 में इसका विस्तार देखना चाहिए) स्वरूप को न तो दानव जानते हैं और न देवता ही ॥14॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll 12-13 ll

 गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 12-13 ll अर्जुन उवाच परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान्‌। पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम्‌॥ आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा। असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे॥ हिंदी अनुवाद  अर्जुन बोले- आप परम ब्रह्म, परम धाम और परम पवित्र हैं, क्योंकि आपको सब ऋषिगण सनातन, दिव्य पुरुष एवं देवों का भी आदिदेव, अजन्मा और सर्वव्यापी कहते हैं। वैसे ही देवर्षि नारद तथा असित और देवल ऋषि तथा महर्षि व्यास भी कहते हैं और आप भी मेरे प्रति कहते हैं  ॥

गीता दशम अध्याय श्लोक के 11

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 11ll तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः। नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता॥ हिंदी अनुवाद  हे अर्जुन! उनके ऊपर अनुग्रह करने के लिए उनके अंतःकरण में स्थित हुआ मैं स्वयं ही उनके अज्ञानजनित अंधकार को प्रकाशमय तत्त्वज्ञानरूप दीपक के द्वारा नष्ट कर देता हूँ ॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll 10 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 10 ll तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्‌। ददामि बद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते॥ हिंदी  अनुवाद  उन निरंतर मेरे ध्यान आदि में लगे हुए और प्रेमपूर्वक भजने वाले भक्तों को मैं वह तत्त्वज्ञानरूप योग देता हूँ, जिससे वे मुझको ही प्राप्त होते हैं ॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll9 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 9 ll मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्‌। कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च॥ हिंदी अनुवाद  निरंतर मुझमें मन लगाने वाले और मुझमें ही प्राणों को अर्पण करने वाले (मुझ वासुदेव के लिए ही जिन्होंने अपना जीवन अर्पण कर दिया है उनका नाम मद्गतप्राणाः है।) भक्तजन मेरी भक्ति की चर्चा के द्वारा आपस में मेरे प्रभाव को जानते हुए तथा गुण और प्रभाव सहित मेरा कथन करते हुए ही निरंतर संतुष्ट होते हैं और मुझ वासुदेव में ही निरंतर रमण करते हैं ll

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll 8 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 8 ll ( फल और प्रभाव सहित भक्तियोग का कथन )   अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते।  इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः॥ हिंदी अनुवाद  मैं वासुदेव ही संपूर्ण जगत्‌ की उत्पत्ति का कारण हूँ और मुझसे ही सब जगत्‌ चेष्टा करता है, इस प्रकार समझकर श्रद्धा और भक्ति से युक्त बुद्धिमान्‌ भक्तजन मुझ परमेश्वर को ही निरंतर भजते हैं ॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll 7 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 7 ll एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः।  सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः॥ हिंदी अनुवाद  जो पुरुष मेरी इस परमैश्वर्यरूप विभूति को और योगशक्ति को तत्त्व से जानता है (जो कुछ दृश्यमात्र संसार है वह सब भगवान की माया है और एक वासुदेव भगवान ही सर्वत्र परिपूर्ण है, यह जानना ही तत्व से जानना है), वह निश्चल भक्तियोग से युक्त हो जाता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है ॥

गीता दशम अध्याय

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 6ll महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा।  मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः॥ हिंदी अनुवाद  सात महर्षिजन, चार उनसे भी पूर्व में होने वाले सनकादि तथा स्वायम्भुव आदि चौदह मनु- ये मुझमें भाव वाले सब-के-सब मेरे संकल्प से उत्पन्न हुए हैं, जिनकी संसार में यह संपूर्ण प्रजा है ॥

श्रीमद भगवद गीता दशम अध्याय, श्लोक ll4-5ll

श्रीमद भगवद गीता दशम अध्याय  श्लोक ll4-5 ll बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोहः क्षमा सत्यं दमः शमः।  सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च॥  अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः।  भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः॥ हिंदी अनुवाद  निश्चय करने की शक्ति, यथार्थ ज्ञान, असम्मूढ़ता, क्षमा, सत्य, इंद्रियों का वश में करना, मन का निग्रह तथा सुख-दुःख, उत्पत्ति-प्रलय और भय-अभय तथा अहिंसा, समता, संतोष तप (स्वधर्म के आचरण से इंद्रियादि को तपाकर शुद्ध करने का नाम तप है), दान, कीर्ति और अपकीर्ति- ऐसे ये प्राणियों के नाना प्रकार के भाव मुझसे ही होते हैं ॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll 3 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 3 ll यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम्‌।  असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते॥ हिंदी अनुवाद  जो मुझको अजन्मा अर्थात्‌ वास्तव में जन्मरहित, अनादि (अनादि उसको कहते हैं जो आदि रहित हो एवं सबका कारण हो) और लोकों का महान्‌ ईश्वर तत्त्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान्‌ पुरुष संपूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है ॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll 2 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll2 ll न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः।  अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः॥ हिंदी अनुवाद  मेरी उत्पत्ति को अर्थात्‌ लीला से प्रकट होने को न देवता लोग जानते हैं और न महर्षिजन ही जानते हैं, क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं का और महर्षियों का भी आदिकारण हूँ ॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll 1 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक ll 1 ll  श्रीभगवानुवाच  भूय एव महाबाहो श्रृणु मे परमं वचः।  यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया॥ हिंदी अनुवाद  श्री भगवान्‌ बोले- हे महाबाहो! फिर भी मेरे परम रहस्य और प्रभावयुक्त वचन को सुन, जिसे मैं तुझे अतिशय प्रेम रखने वाले के लिए हित की इच्छा से कहूँगा ॥

गीता नवम अध्याय, श्लोक ll 34 ll

गीता नवम अध्याय  श्लोक ll 34 ll मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।  मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण:॥ हिंदी अनुवाद  मुझमें मन वाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम कर। इस प्रकार आत्मा को मुझमें नियुक्त करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा ॥     ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्री कृष्णार्जुनसंवादे राजविद्याराजगुह्ययोगो नाम नवमोऽध्यायः  ॥9॥

गीता नवम अध्याय, श्लोक ll 32 ll

गीता नवम अध्याय  श्लोक ll 33 ll किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा।  अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम्‌॥ हिंदी अनुवाद  फिर इसमें कहना ही क्या है, जो पुण्यशील ब्राह्मण था राजर्षि भक्तजन मेरी शरण होकर परम गति को प्राप्त होते हैं। इसलिए तू सुखरहित और क्षणभंगुर इस मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर निरंतर मेरा ही भजन कर ॥

गीता नवम अध्याय, श्लोक ll 32ll

गीता नवम अध्याय  श्लोक ll32ll मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु पापयोनयः।  स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्‌॥ हिंदी अनुवाद  हे अर्जुन! स्त्री, वैश्य, शूद्र तथा पापयोनि चाण्डालादि जो कोई भी हों, वे भी मेरे शरण होकर परमगति को ही प्राप्त होते हैं ॥

गीता नवम् अध्याय, श्लोक ll 31 ll

गीता नवम अध्याय  श्लोक ll 31ll क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति।  कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति॥ हिंदी अनुवाद  वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है और सदा रहने वाली परम शान्ति को प्राप्त होता है। हे अर्जुन! तू निश्चयपूर्वक सत्य जान कि मेरा भक्त नष्ट नहीं होता ॥

गीता नवम अध्याय, श्लोक ll 30ll

गीता नवम अध्याय  श्लोक ll30ll अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्‌।  साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः॥ हिंदी अनुवाद  यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है। अर्थात्‌ उसने भली भाँति निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है ॥

श्रीमद भगवत गीता नाम अध्याय

गीता नवम अध्याय  श्लोक  ll29ll समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः।  ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्‌॥   हिंदी अनुवाद मैं सब भूतों में समभाव से व्यापक हूँ, न कोई मेरा अप्रिय है और न प्रिय है, परंतु जो भक्त मुझको प्रेम से भजते हैं, वे मुझमें हैं और मैं भी उनमें प्रत्यक्ष प्रकट रहता हूं ॥

जवीता नवम्बर अध्याय, श्लोक ll 28 ll

गीता नवम्बर अध्याय  श्लोक ll 28 ll शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्य से कर्मबंधनैः।  सन्न्यासयोगमुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि॥ हिंदी  अनुवाद  इस प्रकार, जिसमें समस्त कर्म मुझ भगवान के अर्पण होते हैं- ऐसे संन्यासयोग से युक्त चित्तवाला तू शुभाशुभ फलरूप कर्मबंधन से मुक्त हो जाएगा और उनसे मुक्त होकर मुझको ही प्राप्त होगा।॥  

गीता नवम अध्याय, श्लोक ll 27 ll

गीता नवम अध्याय  श्लोक ll 27 ll यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्‌।  यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्‌॥ हिंदी अनुवाद  हे अर्जुन! तू जो कर्म करता है, जो खाता है, जो हवन करता है, जो दान देता है और जो तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर ॥

गीता नवम् अध्याय, श्लोक ll26 ll

गीता नवम अध्याय  श्लोक ll 26 ll ( निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा )   पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।  तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः॥ हिंदी अनुवाद  जो कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्धबुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुणरूप से प्रकट होकर प्रीतिसहित खाता हूँ ॥

गीता नवम अध्याय

गीता नवम अध्याय  श्लोक ll 24 ll अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च।  न तु मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्च्यवन्ति ते॥ हिंदी अनुवाद  क्योंकि संपूर्ण यज्ञों का भोक्ता और स्वामी भी मैं ही हूँ, परंतु वे मुझ परमेश्वर को तत्त्व से नहीं जानते, इसी से गिरते हैं अर्थात्‌ पुनर्जन्म को प्राप्त होते हैं  ॥

गीता नवम अध्याय, श्लोक ll 23 ll

गीता नवम अध्याय  श्लोक ll 23 ll येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विताः।  तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम्‌॥ हिंदी अनुवाद  हे अर्जुन! यद्यपि श्रद्धा से युक्त जो सकाम भक्त दूसरे देवताओं को पूजते हैं, वे भी मुझको ही पूजते हैं, किंतु उनका वह पूजन अविधिपूर्वक अर्थात्‌ अज्ञानपूर्वक है ॥

गीता नवम अध्याय, श्लोक ll 22ll

गीता नवम अध्याय  श्लोक ll 22 ll अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।  तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्‌॥ हिंदी अनुवाद  जो अनन्यप्रेमी भक्तजन मुझ परमेश्वर को निरंतर चिंतन करते हुए निष्कामभाव से भजते हैं, उन नित्य-निरंतर मेरा चिंतन करने वाले पुरुषों का योगक्षेम (भगवत्‌स्वरूप की प्राप्ति का नाम 'योग' है और भगवत्‌प्राप्ति के निमित्त किए हुए साधन की रक्षा का नाम 'क्षेम' है) मैं स्वयं प्राप्त कर देता हूँ  ॥

गीता नवम अध्याय, श्लोक ll 21 ll

गीता नवम अध्याय  श्लोक ll 21ll ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालंक्षीणे पुण्य मर्त्यलोकं विशन्ति।  एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते॥ हिंदी अनुवाद  वे उस विशाल स्वर्गलोक को भोगकर पुण्य क्षीण होने पर मृत्यु लोक को प्राप्त होते हैं। इस प्रकार स्वर्ग के साधनरूप तीनों वेदों में कहे हुए सकामकर्म का आश्रय लेने वाले और भोगों की कामना वाले पुरुष बार-बार आवागमन को प्राप्त होते हैं, अर्थात्‌ पुण्य के प्रभाव से स्वर्ग में जाते हैं और पुण्य क्षीण होने पर मृत्युलोक में आते हैं ॥

गीता नवम अध्याय, श्लोक ll 20 ll

गीता नवम अध्याय  श्लोक ll 20 ll  त्रैविद्या मां सोमपाः पूतपापायज्ञैरिष्ट्‍वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते।  ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोकमश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्‌॥ हिंदी  अनुवाद  तीनों वेदों में विधान किए हुए सकाम कर्मों को करने वाले, सोम रस को पीने वाले, पापरहित पुरुष (यहाँ स्वर्ग प्राप्ति के प्रतिबंधक देव ऋणरूप पाप से पवित्र होना समझना चाहिए) मुझको यज्ञों के द्वारा पूजकर स्वर्ग की प्राप्ति चाहते हैं, वे पुरुष अपने पुण्यों के फलरूप स्वर्गलोक को प्राप्त होकर स्वर्ग में दिव्य देवताओं के भोगों को भोगते हैं  ॥

गीता नवम अध्याय, लोक 19

 गीता नवम अध्याय  श्लोक ll 17 ll तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्‌णाम्युत्सृजामि च।  अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन॥ हिंदी अनुवाद  मैं ही सूर्यरूप से तपता हूँ, वर्षा का आकर्षण करता हूँ और उसे बरसाता हूँ। हे अर्जुन! मैं ही अमृत और मृत्यु हूँ और सत्‌-असत्‌ भी मैं ही हूँ  ॥

गीता नवम अध्याय, श्लोक ll 18 ll

गीता नवम अध्याय  श्लोक ll 18 ll गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत्‌।  प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम्‌॥ हिंदी अनुवाद  प्राप्त होने योग्य परम धाम, भरण-पोषण करने वाला, सबका स्वामी, शुभाशुभ का देखने वाला, सबका वासस्थान, शरण लेने योग्य, प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला, सबकी उत्पत्ति-प्रलय का हेतु, स्थिति का आधार, निधान (प्रलयकाल में संपूर्ण भूत सूक्ष्म रूप से जिसमें लय होते हैं उसका नाम 'निधान' है) और अविनाशी कारण भी मैं ही हूँ ॥

गीता नाम अध्याय श्लोक 17

गीता नवम अध्याय श्लोक ll 17 ll पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः।  वेद्यं पवित्रमोङ्कार ऋक्साम यजुरेव च॥ हिंदी अनुवाद  इस संपूर्ण जगत्‌ का धाता अर्थात्‌ धारण करने वाला एवं कर्मों के फल को देने वाला, पिता, माता, पितामह, जानने योग्य, (गीता अध्याय 13 श्लोक 12 से 17 तक में देखना चाहिए) पवित्र ओंकार तथा ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ ॥

गीता नवम अध्याय, श्लोक ll 16 ll

गीता नवम अध्याय  श्लोक ll 16 ll  अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम्‌।  मंत्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम्‌॥ हिंदी अनुवाद  क्रतु मैं हूँ, यज्ञ मैं हूँ, स्वधा मैं हूँ, औषधि मैं हूँ, मंत्र मैं हूँ, घृत मैं हूँ, अग्नि मैं हूँ और हवनरूप क्रिया भी मैं ही हूँ ॥

गीता नवम अध्याय, श्लोक ll15 ll

गीता नवम अध्याय  श्लोक ll 15 ll ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ते यजन्तो मामुपासते।  एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम्।। हिंदी अनुवाद   दूसरे ज्ञानयोगी मुझ निर्गुण-निराकार ब्रह्म का ज्ञानयज्ञ द्वारा अभिन्नभाव से पूजन करते हुए भी मेरी उपासना करते हैं और दूसरे मनुष्य बहुत प्रकार से स्थित मुझ विराट स्वरूप परमेश्वर की पृथक भाव से उपासना करते हैं ।।

गीता नवम अध्याय, श्लोक ll 14 ll

गीता नवम अध्याय  श्लोक ll 14 ll सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढ़व्रताः।  नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते॥ हिंदी अनुवाद  वे दृढ़ निश्चय वाले भक्तजन निरंतर मेरे नाम और गुणों का कीर्तन करते हुए तथा मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करते हुए और मुझको बार-बार प्रणाम करते हुए सदा मेरे ध्यान में युक्त होकर अनन्य प्रेम से मेरी उपासना करते हैं ॥

गीता नवम अध्याय, श्लोक ll 12 ll

गीता नवम अध्याय  श्लोक ll 12 ll मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः।  राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः॥ हिंदी अनुवाद  वे व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ ज्ञान वाले विक्षिप्तचित्त अज्ञानीजन राक्षसी, आसुरी और मोहिनी प्रकृति को (जिसको आसुरी संपदा के नाम से विस्तारपूर्वक भगवान ने गीता अध्याय 16 श्लोक 4 तथा श्लोक 7 से 21 तक में कहा है) ही धारण किए रहते हैं ॥