गीता दशम अध्याय
श्लोक ll 18 ll
भूयः कथय तृप्तिर्हि श्रृण्वतो नास्ति मेऽमृतम्॥
हिंदी अनुवाद
हे जनार्दन! अपनी योगशक्ति को और विभूति को फिर भी विस्तारपूर्वक कहिए, क्योंकि आपके अमृतमय वचनों को सुनते हुए मेरी तृप्ति नहीं होती अर्थात् सुनने की उत्कंठा बनी ही रहती है ॥
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें