गीता अध्याय ll18 ll
श्लोक ll 6 ll
कर्तव्यानीति में पार्थ निश्चितं मतमुत्तमम्॥
हिंदी अनुवाद
इसलिए हे पार्थ! इन यज्ञ, दान और तपरूप कर्मों को तथा और भी सम्पूर्ण कर्तव्यकर्मों को आसक्ति और फलों का त्याग करके अवश्य करना चाहिए, यह मेरा निश्चय किया हुआ उत्तम मत है ॥
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