गीता अध्याय ll 18 ll
श्लोक ll 57 ll
बुद्धियोगमुपाश्रित्य मच्चित्तः सततं भव॥
हिंदी अनुवाद
सब कर्मों को मन से मुझमें अर्पण करके (गीता अध्याय 9 श्लोक 27 में जिसकी विधि कही है) तथा समबुद्धि रूप योग को अवलंबन करके मेरे परायण और निरंतर मुझमें चित्तवाला हो ॥
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