गीता अध्याय ll 15 ll
श्लोक ll 3 ll
अश्वत्थमेनं सुविरूढमूल मसङ्गशस्त्रेण दृढेन छित्त्वा॥
हिंदी अनुवाद
इस संसार वृक्ष का स्वरूप जैसा कहा है वैसा यहाँ विचार काल में नहीं पाया जाता जाता, इस संसार का जैसा स्वरूप शास्त्रों में वर्णन किया गया है और जैसा देखा-सुना जाता है, उसका अन्त नहीं है, यह कहने का प्रयोजन यह है कि इसकी परम्परा कब तक चलती रहेगी, इसका कोई पता नहीं है तथा न इसकी अच्छी प्रकार से स्थिति ही है, इसलिए इस अहंता, ममता और वासनारूप अति दृढ़ मूलों वाले संसार रूप पीपल के वृक्ष को दृढ़ वैराग्य रूप शस्त्र द्वारा काटकर अलग कर दिया जाना चाहिए |
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