सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

गीता त्रयोदश अध्याय, श्लोक ll 6 ll

गीता त्रयोदश अध्याय अनुवाद 

श्लोक ll 6 ll

इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं सङ्‍घातश्चेतना धृतिः।
एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम्‌॥

हिन्दी अनुवाद

तथा इच्छा, द्वेष, सुख, दुःख, स्थूल देहका पिण्ड, चेतना (शरीर और अन्तःकरण की एक प्रकार की चेतन-शक्ति।) और धृति (गीता अध्याय 18 श्लोक 34 व 35 तक देखना चाहिए।)-- इस प्रकार विकारों (पाँचवें श्लोक में कहा हुआ तो क्षेत्र का स्वरूप समझना चाहिए और इस श्लोक में कहे हुए इच्छादि क्षेत्र के विकार समझने चाहिए।) के सहित यह क्षेत्र संक्षेप में कहा गया ॥

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

गीता अस्टमी अध्याय, श्लोक ll 5 ll

गीता अस्टम अध्याय  श्लोक ll 5 ll अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्‌।  यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः॥ हिंदी अनुवाद  जो पुरुष अंतकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात स्वरूप को प्राप्त होता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है  ॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll 40 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक 40 नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप। एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया॥  हदी अनुवाद हे परंतप! मेरी दिव्य विभूतियों का अंत नहीं है, मैंने अपनी विभूतियों का यह विस्तार तो तेरे लिए एकदेश से अर्थात्‌ संक्षेप से कहा है ॥

गीता अष्टम अध्याय, श्लोक ll23 ll

गीता अष्टम अध्याय  श्लोक ll23ll  यत्र काले त्वनावत्तिमावृत्तिं चैव योगिनः।  प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ॥ हिंदी अनुवाद  हे अर्जुन! जिस काल में शरीर त्याग कर गए हुए योगीजन तो वापस न लौटने वाली गति को और जिस काल में गए हुए वापस लौटने वाली गति को ही प्राप्त होते हैं, उस काल को अर्थात दोनों मार्गों को कहूँगा ॥ Note: (यहाँ काल शब्द से मार्ग समझना चाहिए, क्योंकि आगे के श्लोकों में भगवान ने इसका नाम 'सृति', 'गति' ऐसा कहा है।)