गीता त्रयोदश अध्याय
श्लोक ll 25 ll
तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः॥
हिन्दीअनुवाद
परन्तु इनसे दूसरे अर्थात जो मंदबुद्धिवाले पुरुष हैं, वे इस प्रकार न जानते हुए दूसरों से अर्थात तत्व के जानने वाले पुरुषों से सुनकर ही तदनुसार उपासना करते हैं और वे श्रवणपरायण पुरुष भी मृत्युरूप संसार-सागर को निःसंदेह तर जाते हैं
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें