गीता एकादश अध्याय
श्लोक ll 33 ll
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्॥
हिन्दी अनुवाद
अतएव तू उठ! यश प्राप्त कर और शत्रुओं को जीतकर धन-धान्य से सम्पन्न राज्य को भोग। ये सब शूरवीर पहले ही से मेरे ही द्वारा मारे हुए हैं। हे सव्यसाचिन! (बाएँ हाथ से भी बाण चलाने का अभ्यास होने से अर्जुन का नाम 'सव्यसाची' हुआ था) तू तो केवल निमित्तमात्र बन जा ॥
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