सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

गीता एकादश अध्याय, श्लोक ll 17 ll

गीता एकादश अध्याय

 श्लोक 17

किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च तेजोराशिं सर्वतो दीप्तिमन्तम्‌।
पश्यामि त्वां दुर्निरीक्ष्यं समन्ताद्दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम्‌॥

 हदी अनुवाद

आपको मैं मुकुटयुक्त, गदायुक्त और चक्रयुक्त तथा सब ओर से प्रकाशमान तेज के पुंज, प्रज्वलित अग्नि और सूर्य के सदृश ज्योतियुक्त, कठिनता से देखे जाने योग्य और सब ओर से अप्रमेयस्वरूप देखता हूँ ॥

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

गीता अस्टमी अध्याय, श्लोक ll 5 ll

गीता अस्टम अध्याय  श्लोक ll 5 ll अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्‌।  यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः॥ हिंदी अनुवाद  जो पुरुष अंतकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात स्वरूप को प्राप्त होता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है  ॥

गीता दशम अध्याय, श्लोक ll 40 ll

गीता दशम अध्याय  श्लोक 40 नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप। एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया॥  हदी अनुवाद हे परंतप! मेरी दिव्य विभूतियों का अंत नहीं है, मैंने अपनी विभूतियों का यह विस्तार तो तेरे लिए एकदेश से अर्थात्‌ संक्षेप से कहा है ॥

गीता अष्टम अध्याय, श्लोक ll23 ll

गीता अष्टम अध्याय  श्लोक ll23ll  यत्र काले त्वनावत्तिमावृत्तिं चैव योगिनः।  प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ॥ हिंदी अनुवाद  हे अर्जुन! जिस काल में शरीर त्याग कर गए हुए योगीजन तो वापस न लौटने वाली गति को और जिस काल में गए हुए वापस लौटने वाली गति को ही प्राप्त होते हैं, उस काल को अर्थात दोनों मार्गों को कहूँगा ॥ Note: (यहाँ काल शब्द से मार्ग समझना चाहिए, क्योंकि आगे के श्लोकों में भगवान ने इसका नाम 'सृति', 'गति' ऐसा कहा है।)